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@premguptamaniknprgmailcom4113
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रेगिस्तान की गर्म...तपती-बलुई ज़मीन पर नंगे पाँव चलने की मजबूरी कैसी होती है, यह तो वही बता सकता है जिसके पाँव में छाले हों। यह छाले जब फूटते हैं तो एक अजीब सी टीसन देते हैं। इस टीसन से घबरा कर ज़िन्दगी कभी किसी अन्धी खाई की ओर जाने लगती है, तो कभी किसी रोशनी से रूबरू होकर एक नई दिशा की ओर मुड़ जाती है। मैने ज़िन्दगी को दर्द के इसी आइने में देखा है...। यह दर्द जब स्याही बन कर कागज़ पर छलका, तब कुछ कहानियों ने जन्म लिया। मेरी अब तक छ एकल संग्रह और चार संपादित संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं |
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