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गमकौआ भात
Smita
द्वारा
हिंदी क्लासिक कहानियां
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विवरण
छोटी उम्र में लगभग रोज सींकू ( बिहार में दुबले-पतले बच्चे को मजाक-मजाक में सींक, सींकू, बांस, सींकिया पहलवान आदि नाम से पुकारने लगते हैं) किसी न किसी से यह कहते हुए जरूर सुनता कि उसके दादाजी बहुत अमीर थे। गमकौआ बासमती भात छोड़कर कभी वे दूसरी तरह के चावल की तरफ देखते तक नहीं थे। उसकी दादी तो घर आने-जाने वाले हर एक को एक मुट्ठी काजू-किशमिश जरूर देतीं। उनके जमाने में हर घर में बिजली की सुविधा नहीं होती थी। इस कारण ज्यादातर घरों में लालटेन या ढिबरी जला करती। किरोसिन तेल की जगह वे ढिबरी में इत्र
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