ज़िंदगी जब बदरंग और बेमेल होती है तो अपना साया तक साथ छोड़ देता है। क्या हुआ जब धनाढ्य ...
प्रिय पापा, सबसे पहले तो मुझे क्षमा करें मैने आपके लिए आदरणीय के स्थान पर प्रिय शब्द का इस्तेमाल ...
दोपहर के दो बजे। तेज धूप और उमस भरी गर्मी। आग की भांति तपता दिल्ली रेलवे स्टेशन का वह ...
"इतनी जरूरी मीटिंग और ऊपर से लेट हो गया। आज तो मेरी खैर नहीं। पक्का आज तो मुझपर शामत ...
रूपेश ट्रेन में अपने बर्थ पर आकर बैठा ही था, तभी जीन्स और टी-शर्ट पहने 25–26 साल की एक ...
"मुझे स्कूल पहुंचा दो । जब मैं वहाँ जाकर खूब रोऊंगी, तब पापा को मुझे लेने आना ही पड़ेगा।" ...
जब से फैक्ट्री मे मेरी दूसरी पाली की शिफ्ट ड्यूटी लगी थी, तब से रात्रि में घर जाने मे ...