कहानी- ये कहां आ गये हम ...
कहानी- “जन्म दिन” ...
भटके हुये लोग “अब क्या खून पियेगा मेरा ? शरीर मे दूध बचा हो तो तुझे पिलाऊ ? जा, ...
फाँस कमली न जाने क्यों मन में ईर्ष्या की गांठ लिये बड़ी देर तक मकान के छज्जे की छाया ...
और सूरज डूब गया राष्ट्रीय राजमार्ग पर सड़को को रौंदते ट्रकों की आवाज़ंे हाइवे के सुनसान वातावरण को जैसे ...
अन्दर का आदमी वह नमस्कार के बाद चुपचाप जाकर कुर्सी पर बैठ गया । उसने देखा कि निर्मला उसे ...
अनोखी वफ़ा राजेश कुमार भटनागर जब सांझ गहराकर काली पड़ने लगती और रात का अंधेरा अपनी बाहें फैलाने लगता ...
घड़ी ने रात के बाहर बजा दिये । घड़ी का अलारम टन...टन....टन... करता हुआ बारह बार बोलकर खामोष हो ...
ज़िन्दगी की हज़ारों षामों की तरह ही आज की शाम भी ढलने को थी । सूरज उसके आंगन के ...
आज राजन की बीमारी को पूरे आठ माह हो चुके थे । जबसे डाक्टरों ने राजन को एड्स होने ...