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नारद भक्ति सूत्र - 12. विकारों से बचाव

by Radhey Shreemali

12.विकारों से बचावकस्तरति कस्तरति मयाम् ? यः संगांस्त्यजति, यो महानुभावं सेवते, निर्ममो भवति॥४६॥अर्थ : कौन तरता है, कौन तरता ...

नारद भक्ति सूत्र - 11.विकारों का प्रभाव

by Radhey Shreemali
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11.विकारों का प्रभावकामक्रोध मोहस्मृतिभ्रंश बुध्दिनाशसर्वनाश कारणत्वात् ||४४||अर्थ : काम, क्रोध, मोह, स्मृतिभ्रंश, बुद्धिनाश ये सर्वनाश का कारण है।।४४||पिछले कुछ ...

नारद भक्ति सूत्र - 10.सत्य संघ का प्रभाव

by Radhey Shreemali
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10.सत्य संघ का प्रभावमुख्यतस्तु महत्कृपयैव भगवत्कृपालेशाद्वा ||३८||अर्थ : मुख्यतया महापुरुषों की कृपा से या भगवत् कृपा के लेश मात्र ...

नारद भक्ति सूत्र - 9. श्रवण, कीर्तन, भजन से भक्ति में बढ़ोत्तरी

by Radhey Shreemali
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9.श्रवण, कीर्तन, भजन से भक्ति में बढ़ोत्तरीअव्यावृत भजनात् ||३६||अर्थ : (अथवा) अखंड भजन से ।। ३६ ।।नारदजी भक्ति बढ़ाने ...

नारद भक्ति सूत्र - 8. भक्ति बढ़ाने के साधन

by Radhey Shreemali
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8.भक्ति बढ़ाने के साधनतस्याः साधनानि गायंताचार्याः ||३४||अर्थ : उस (भक्ति) को प्राप्त करने के साधन बताते हैं ।। ३४।।जैसा ...

नारद भक्ति सूत्र - 7.भक्ति का स्वादिष्ट फल

by Radhey Shreemali
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7.भक्ति का स्वादिष्ट फलराजगृहभोजनादिषु तथैव दृष्टत्वात्॥ ३१ ॥न तेन राजपरितोषः क्षुधाशांतिर्वा ||३२||अर्थ : राजगृहों में भोजन के समय ऐसा ...

नारद भक्ति सूत्र - 6. ज्ञान बड़ा या भक्ति ?

by Radhey Shreemali
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6.ज्ञान बड़ा या भक्ति ?तस्या ज्ञानमेव साधनमित्येके ||२८||अन्योन्याश्रयत्वमित्यन्ये ||२९||अर्थ : कुछ आचार्यों का मत है परम-प्रेम-रूपा भक्ति का साधन ...

नारद भक्ति सूत्र - 5. आध्यात्मिक प्रेम और सांसारिक आसक्ति में अंतर

by Radhey Shreemali
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5.आध्यात्मिक प्रेम और सांसारिक आसक्ति में अंतरअस्त्येवमेवम् ||२०||यथा व्रजगोपिकानाम ||२१||तत्रापि न माहात्म्यज्ञानविस्मृत्यपवादः ||२२||तद्विहीनं जावाणामिव। ||२३||नास्त्येव तस्मिन तत्सुखसुखित्वम्। ||२४||अर्थ : ...

नारद भक्ति सूत्र - 4. विभिन्न मतों से भक्ति के लक्षण

by Radhey Shreemali
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4.विभिन्न मतों से भक्ति के लक्षणतलक्षणानि वाच्यन्ते नानामतभेदात् ||१५||पूजादिष्वनुराग इति पराशर्यः। ।।१६।।कथादिष्विति गर्गः। ।।१७।।अर्थ : (नारद जी) अब नाना ...

नारद भक्ति सूत्र - 3. भक्ति के अनुकूल कर्म कैसे हो

by Radhey Shreemali
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3.भक्ति के अनुकूल कर्म कैसे होनिरोधस्तु लोकवेदव्यापारन्यासः ||८||तस्मिन्ननन्यता तद्विरोधिषूदासीनता च ॥९॥अन्याश्रयाणां त्यागोऽनन्यता ||१०||लोके वेदेषु तदनुकूलाचरणं तद्विरोधिषूदासीनता ||११||अर्थ : निरोधस्तु ...