12.विकारों से बचावकस्तरति कस्तरति मयाम् ? यः संगांस्त्यजति, यो महानुभावं सेवते, निर्ममो भवति॥४६॥अर्थ : कौन तरता है, कौन तरता ...
11.विकारों का प्रभावकामक्रोध मोहस्मृतिभ्रंश बुध्दिनाशसर्वनाश कारणत्वात् ||४४||अर्थ : काम, क्रोध, मोह, स्मृतिभ्रंश, बुद्धिनाश ये सर्वनाश का कारण है।।४४||पिछले कुछ ...
10.सत्य संघ का प्रभावमुख्यतस्तु महत्कृपयैव भगवत्कृपालेशाद्वा ||३८||अर्थ : मुख्यतया महापुरुषों की कृपा से या भगवत् कृपा के लेश मात्र ...
9.श्रवण, कीर्तन, भजन से भक्ति में बढ़ोत्तरीअव्यावृत भजनात् ||३६||अर्थ : (अथवा) अखंड भजन से ।। ३६ ।।नारदजी भक्ति बढ़ाने ...
8.भक्ति बढ़ाने के साधनतस्याः साधनानि गायंताचार्याः ||३४||अर्थ : उस (भक्ति) को प्राप्त करने के साधन बताते हैं ।। ३४।।जैसा ...
7.भक्ति का स्वादिष्ट फलराजगृहभोजनादिषु तथैव दृष्टत्वात्॥ ३१ ॥न तेन राजपरितोषः क्षुधाशांतिर्वा ||३२||अर्थ : राजगृहों में भोजन के समय ऐसा ...
6.ज्ञान बड़ा या भक्ति ?तस्या ज्ञानमेव साधनमित्येके ||२८||अन्योन्याश्रयत्वमित्यन्ये ||२९||अर्थ : कुछ आचार्यों का मत है परम-प्रेम-रूपा भक्ति का साधन ...
5.आध्यात्मिक प्रेम और सांसारिक आसक्ति में अंतरअस्त्येवमेवम् ||२०||यथा व्रजगोपिकानाम ||२१||तत्रापि न माहात्म्यज्ञानविस्मृत्यपवादः ||२२||तद्विहीनं जावाणामिव। ||२३||नास्त्येव तस्मिन तत्सुखसुखित्वम्। ||२४||अर्थ : ...
4.विभिन्न मतों से भक्ति के लक्षणतलक्षणानि वाच्यन्ते नानामतभेदात् ||१५||पूजादिष्वनुराग इति पराशर्यः। ।।१६।।कथादिष्विति गर्गः। ।।१७।।अर्थ : (नारद जी) अब नाना ...
3.भक्ति के अनुकूल कर्म कैसे होनिरोधस्तु लोकवेदव्यापारन्यासः ||८||तस्मिन्ननन्यता तद्विरोधिषूदासीनता च ॥९॥अन्याश्रयाणां त्यागोऽनन्यता ||१०||लोके वेदेषु तदनुकूलाचरणं तद्विरोधिषूदासीनता ||११||अर्थ : निरोधस्तु ...